ज्ञानवापी में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने 4 जून को शिवलिंग पूजन करने का किया ऐलान,जबकि कोर्ट ने अभी तय भी नहीं किया कि यह केस सुनवाई के लायक है या नहीं-
वाराणसी: Announcement of worship in Gyanvapi campus- द्वारिका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती के शिष्य और प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले तथाकथित शिवलिंग का 4 जून को पूजा अर्चना कर जलाभिषेक करने का ऐलान किया है। आज (गुरूवार) को केदारघाट स्थित श्री विद्यामठ में आयोजित प्रेसकांफ्रेंस में स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने यह ऐलान किया है।
इस दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि “विगत वैशाख पूर्णिमा के दिन काशी में शताब्दियों से तिरोहित श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के पुन: प्रकट होने से सम्पूर्ण देश के सनातन धर्मावलम्बियों में प्रसन्नता का माहौल है, करोड़ों लोग प्रकट प्रभु के दर्शन और पूजन के लिये उत्सुक हैं।”
(Announcement of worship in Gyanvapi campus)
प्रेसकांफ्रेंस के दौरान स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि “शास्त्रों में प्रभु के प्रकट होते ही दर्शन करके उनकी स्तुति करने और रागभोगपूजा आरती करके भेंट चढ़ाने का नियम है।” उन्होंने कहा कि “कौशल्या जी के सामने श्रीराम के प्रकट होने पर कौशल्या जी ने रामजी की स्तुति व देवकी जी के सामने कृष्ण के प्रकट होने पर देवकी वासुदेव के द्वारा स्तुति करने का वर्णन मिलता है।”
स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि “प्रभु के प्रकट होते ही उनकी स्तुति पूजा और रागभोग होना चाहिये था। इस परम्परा को जानने वाले सनातनियों ने स्तुति-पूजा के लिये न्यायालय से अनुमति माँगी। जिन में शृंगार गौरी व आदि विश्वेश्वर से संबंधित मुक़दमों के अनेक पक्षकारों सहित पूज्यपाद शंकराचार्य जी की शिष्यायें अविरलगंगा तपस्विनी साध्वी पूर्णाम्बा व शारदाम्बा और काशी विश्वनाथ मन्दिर के महन्त परिवार के सदस्य भी थे। लेकिन दुर्भाग्य से अदालत ने इस मामले की गंभीरता और एक आस्तिक हिन्दू के दृष्टिकोण को नहीं समझा और आवेदनों की सुनवायी के लिये तारीख़ पर तारीख़ देते हुए अब 4 जुलाई की तारीख़ लगा दी है।”
हालांकि यह मामला अभी कोर्ट में है और कोर्ट ने तो अभी तक यह भी निर्णय नहीं लिया कि यह केस कोर्ट में सुनने लायक़ भी है या नहीं? यह निर्णय कोर्ट अपनी अगली सुनवाई में करेगा, लेकिन स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने ज्ञानवापी पर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच पूजन जलाभिषेक करने का ऐलान कैसे कर दिया? यह सोचनीय बात है। कुछ ऐसे ही सवाल पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि “धार्मिक मामलों में शंकराचार्य का आदेश ही सर्वोपरि होता है इसलिये उनके आदेश का पालन होगा।” 4 जून को वह कब और कैसे मस्जिद परिसर में प्रवेश करेंगे? इस सवाल पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि इसे अभी गोपनीय रखा गया है।”
स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि “ज्ञानवापी परिसर में (तथाकथित) शिवलिंग के मिलने के स्थान को सील इसी आधार पर किया है कि उसे विवादित माना है तो फ़िर उस (ज्ञानवापी) परिसर में कोर्ट ने मुस्लिमों को कैेसे नमाज़ का अवसर दिया और हिन्दुओं को क्यों पूजा से वंचित रखा है? इस से उन्हें पक्षपात का अंदेशा होता है।” (Announcement of worship in Gyanvapi campus)
स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने आगे कहा कि “इस सन्दर्भ का 1991 का क़ानून न्याय के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है, इस समय केन्द्र सरकार बहुमत में है और उनको चाहिये कि वह (केन्द्र सरकार) उपासना स्थल अधिनियम-1991 को तत्काल समाप्त करें, ताकि हिन्दू फ़िर से अपने स्थान को सम्मान के साथ प्राप्त कर सकें और हिन्दुओं के साथ न्याय हो।”
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