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क्या अब बुलडोज़र में ही शिकायतकर्ता,जाँच अधिकारी, जज, जुर्माना, कुर्की और फाँसी की सज़ा जैसी न्यायिक प्रक्रिया की सामुहिक शक्तियां समाहित हो गई हैं? अदालतें करें अपने अस्तित्व का आत्ममंथन- Now bulldozer became law and judiciary in India?

क्या अब बुलडोज़र में ही शिकायतकर्ता,जाँच अधिकारी, जज, जुर्माना, कुर्की और फाँसी की सज़ा जैसी न्यायिक प्रक्रिया की सामुहिक शक्तियां समाहित हो गई हैं? अदालतें करें अपने अस्तित्व का आत्ममंथन-

Now bulldozer became law and judiciary in India?- यूपी में एक एडीजे. (ADJ) के पिता जी की भूमि का मुआवज़े के बावजूद भी सरकार कर लेती है। अपनी भूमि पर हो रहे निर्माण और क़ब्ज़े को रोकने के लिये कोट और टाई पहने हुए जज साहब शुक्ला जी बुल्डोज़र के आगे लेट गये तो ज़मीन तो बची नहीं और ऊपर से हाईकोर्ट ने भी जज साहब को नौकरी से सस्पैंड कर दिया। यूपी के ही एक दूसरे मामले में एक नाबालिग लड़की से गैंगरेप आरोपियों के घर के सामने अफ़सरों ने जब बुल्डोज़र खड़ा कर दिया तो 5 अभियुक्तों ने पुलिस के सामने एकाएक सरैंडर कर दिया। [Now bulldozer became law and judiciary in India?]

यूपी में ही बसपा, सपा व बीजेपी की सरकारों के संरक्षण में पले विकास दुबे के पुलिस एनकाऊंटर के बाद उसकी सम्पत्ति को बुल्डोज़र से धराशायी कर दिया गया। अपनी निजी सेना चलाने वाले विकास का इतना दबदबा था कि उसके विरुद्ध मुक़द्दमे में गवाही देने से पुलिस वाले भी मुकर जाते हैं। ऐसे माफ़ियाओं और अपराधियों पर बुल्डोज़र चलने से आम जनता में ख़ुशी और संतोष की भावना बढ़ती है। लेकिन बुल्डोज़र संहिता की क़ानून और उसकी प्रक्रिया निर्धारित नहीं होने से बुलडोज़र के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।

अब तो यूपी के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की प्रचण्ड जीत के बाद देश के अन्य राज्यों में भी बुल्डोज़र संस्कृति का प्रचार-प्रसार ख़ूब रहा है। अभी मध्य प्रदेश में रामनवमी के जलूस पर पथराव करने वाले दंगाइयों के घरों को बिना जाँच पड़ताल के ही बुल्डोज़र से ढहाए जाने पर संविधान व क़ानूनी प्रक्रिया पर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। [Now bulldozer became law and judiciary in India?]

आवाज़ उठ रही है कि संविधान के अनुसार प्रभावित होने वाले पक्ष को सुनने के बाद ही कोई कार्यवाही होनी चाहिये। लेकिन इस बुलडोज़र संस्कृति को अपनाने वाली सरकारों का मानना है कि बुल्डोज़र की धमक और कार्यवाही से ही अपराधियों के हौंसले ठण्डे पड़ते हैं। देश की क़ानून की किताबों में शिकायत, जाँच जुर्माना, सज़ा, फाँसी, कुर्की जैसे कई दंडों का विधान तो मिलता है लेकिन बुल्डोज़र का किसी भी क़ानून की किताब में कोई ज़िक्र नहीं है।

देश में बुल्डोजर रूपी सत्ता के प्रकोप से नागरिकों को बचाने हेतु ही संविधान में नागरिकों को अनेक मूल अधिकार दिये गये हैं। जिन में जीने का अधिकार और क़ानून का शासन प्रमुख हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष- 1978 के मेनका गाँधी मामले में प्रशासन और सरकार की कार्यविधि के बारे में कई मार्गदर्शक सिद्धांत निर्धारित किये थे जिनकी इस बुल्डोज़र संस्कृति में अनदेखी हो रही है। CRPC की धारा 133 के तहत सार्वजनिक भूमि पर अवैध निर्माण गिराना सरकार के अधिकार के साथ उसकी बड़ी ज़िम्मेदारी भी है। [Now bulldozer became law and judiciary in India?]

वहीं जिस तरह से यूपी,मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों में घटना के तुरन्त बाद आरोपियों की सम्पत्तियों को धराशायी जा रहा है इससे ऐसा लगता है जैसे शिकायतकर्ता , जाँच अधिकारी, जज और जल्लाद इन सभी का सामूहिक अधिकार और शक्तियां अब बुल्डोज़र में ही समाहित हो गयी हैं। हाल के दिनों में जिस प्रकार से आनन फ़ानन में किसी भी सच्ची या झूठी शिकायत पर तुरन्त अपराधी की पहचान और बुलडोज़र की त्वरित कार्यवाही का चलन बढ़ रहा है इस से भविष्य में पुलिस जाँच, आरोपपत्र, गवाह, साक्ष्य, बयान, जिरह, अदालती निर्णय और अपील सहित पूरा न्यायिक प्रणाली बेमानी हो जायेगीहै।

आज देश में बड़ी संख्या में सत्ता पक्ष और विपक्षी नेताओं के विरुद्ध गम्भीर और अति गम्भीरतम अपराधों के मामले अदालतों में विचाराधीन हैं। लेकिन सत्ता में बैठे नेतागण जिस शिद्दत के साथ बुल्डोज़र के नाम पर झटपट इन्साफ़ की दुहाई दे रहे हैं क्या संविधान इन्हें इनके विरुद्ध बुलडोज़र की ऐसी कार्यवाही से मुक्त करता है? यदि संविधान के अनुसार देश के सभी लोग बराबर हैं तो फ़िर सभी राजनीतिक दलों के दागी नेताओं और रसूख़दारों की भी इसी प्रकार अवैध संपत्तियों पर बुल्डोज़र चलना चाहिये। [Now bulldozer became law and judiciary in India?]

हालाँकि देश के क़ानून के तहत किसी भी अपराधी के परिवारजनों को दण्डित नहीं किया जाना चाहिये लेकिन बुल्डोज़र के निशाने पर अपराधियों के साथ उनके परिजनों भी आ जाते हैं चाहे उनका अपराधी से मौजूदा समय मे पारिवारिक मनभेद, मतभेद और दुश्मनी ही क्यों न हो। लेकिन बुलडोज़र की अपराधी के विरुद्ध घर धराशायी की प्रक्रिया में सिर्फ़ ख़ून के रिश्ते के दूसरे पारिवारिक लोगों को भी छत से वंचित कर दण्डित किया जाता है।

हाल ही में मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत बनाये गये घरों पर भी बुल्डोज़र चलाया गया है। क्या ऐसी परिस्थिति में उन घरों पर बुल्डोज़र चलाने के साथ उन सरकारी अधिकारियों की नौकरी पर बुल्डोज़र चलाया गया जिन्होंने ऐसे अपात्र लोगों को प्रधानमंत्री आवास देकर सरकारी धनराशि से अवैध घरों का निर्माण करवा दिया? [Now bulldozer became law and judiciary in India?]
Courtesy- punjabkesari.in
Edited By- Farhad Pundir

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