नहीं रही 1000 बच्चों की माँ, मरते हुए कह गई कि मेरे बच्चों का ख़्याल रखना- Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more-नहीं रही 1000 बच्चों की माँ, मरते हुए कह गई कि मेरे बच्चों का ख़्याल रखना

पुणे: Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more- महाराष्ट्र के पुणे में उस समय एक बार फ़िर से लगभग 1200 बच्चे अनाथ हो गए जब अनाथ बच्चों को सहारा देने वाली उनकी माँ सिंधुताई सकपाल इस दुनिया को अलविदा कह गई। सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) ने मंगलवार को पुणे के गैलेक्सी केयर हॉस्पिटल में आख़िरी सांस ली। वे पिछले लगभग डेढ़ महीने से हॉस्पिटल में भर्ती थीं। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

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वाक़ई 1966 में आयी हिन्दी फ़िल्म ‘बादल” का ये गीत “अपने लिए जिये तो क्या जियें…जी ऐ दिल ज़माने के लिए” बिल्कुल सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) की ज़िन्दगी पर सटीक बैठता है। सिंधुताई सकपाल की ज़िन्दगी जन्म से ही बहुत कष्टों के साथ शुरु हुई और बचपन से लेकर जवानी प्रौढ़ता प्राप्त करने तक हमेशा ज़िन्दगी की चुनौतियों से लड़ती रही लेकिन उन्होंने कभी मायूसी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।

जब देश स्वतंत्र हुआ तो सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) भी देश की स्वतंत्रता के साथ ही अपनी मां की कोख से आज़ाद हुई। उनका जन्म वर्धा के एक चरवाहा परिवार में हुआ था। उनके माता पिता को बेटी नहीं बल्कि बेटा चाहिए था लेकिन वो एक बिन माँगी मुराद थी जिस कारण उसका नाम ‘चिंदी’ पड़ा। मराठी भाषा में कपड़ों की उतरन को ‘चिंदी’ कहा जाता है। इसलिए माँ-बाप और परिवार का प्यार क्या होता है? उसने कभी नहीं पाया। माँ-बाप ने कम ही उम्र में उसकी शादी कर उससे छुटकारा पा लिया। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

शादी क्या होती है? इतनी कम उम्र में उसे कुछ समझ नहीं थी लेकिन जब शादी की उम्र को पहुँची तब शादी टूट गई। लेकिन तब भी सिंधुताई सकपाल नहीं टूटी, ससुराल वालों ने उस समय उन्हें घर से निकाल दिया जब वह गर्भवती थी। मायके का भी दरवाज़ा बन्द हो चुका था। ऐसी विकट परिस्थितियों में सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) ने भीख़ माँग-माँगकर कर अपना पेट भरना शुरु किया। कई बार भूखे पेट भी रहना पड़ जाता था। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

लेकिन वह भूख़ में भी हमेशा सोचती रहती थी कि भगवान उसे ऐसा सामर्थ्य दे कि वो समाज के हज़ारों बेसहारा बच्चों को ख़ाना खिलाये और उन बेसहारो को आसरा दे। लेकिन वह खुद बेसहारा और भूखी रहती थी तो ये कैसे संभव हो सकता है कि वो हज़ारों बच्चों को खाना खिलाये और आसरा दे पाए?

लेकिन ये बात सच है कि जब कोई सुबह-शाम और दिन रात किसी सपनों के साथ चलते हैं तो एक दिन वो ज़रूर पूरे होते हैं। सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) ने आहिस्ता आहिस्ता अपनी ज़रूरतों और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं को मारते हुए जो भी जहाँ से भीख़ या सहायता मिली बचत करती रही और एक दिन सिंधुताई सकपाल ने अपने सपने को पूरा करने की शुरुआत करते हुए पुणे में “सनमति बाल निकेतन अनाथालय” की आधारशिला रखी। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no moreजिन भी बच्चों को उनके माँ बाप छोड़ दिया करते थे सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) उन बच्चों को अपने अनाथालय में रखने लगी। आहिस्ता आहिस्ता एक-एक,दो-दो करके अब तक सिंधुताई सकपाल के “सनमति बाल निकेतन अनाथालय” में 1200 से अधिक बच्चों ने आश्रय पाया। जिनमें से कुछ ने बड़े होकर अपनी विमाता सिंधुताई सकपाल की तरह ही समाज सेवा के संस्कार को आगे बढ़ाने का काम किया।

Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no moreSindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more- सिंधुताई सकपाल अक्सर कहा करती थीं कि “मैं कितनी सौभाग्यशाली हूँ कि मेरे एक या दो बच्चे नहीं बल्कि हज़ार बच्चे हैं।” जिस सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) को कभी उनके माँ बाप ने “चिंदी” (कपड़ो की उतरन) नाम दिया था आगे चलकर उसी चिंदी को भारत ने पद्मश्री सम्मान दिया। कुल मिलाकर उन्हें 700 से अधिक सम्मान मिले। मात्र चौथी कक्षा पास होते हुए भी उन्हें ‘डी.वाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड रिसर्च’ पुणे की तरफ़ से डॉक्टरेट की डिग्री भी मिली थी। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

हमेशा सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) को जो जहाँ से कुछ भी मिला वह सब उन्होंने अपने बच्चों पर ही ख़र्च किया। अपने लिए कभी कुछ नहीं किया। हमेशा अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी की इच्छाओं को मारकर सिर्फ़ अपने बच्चों पर ही प्यार लुटाया। अपने जीते जी हमेशा हज़ारों बच्चों की ज़रूरतों को ही पूरा करने के लिए सिंधुताई सकपाल दिन रात मरती मरती खपती रहीं…

लेकिन जब मर रही थी तब भी यह सोचकर जीने की तमन्ना कर रही थी कि “अब उसके बाद इन हज़ारों बच्चों का क्या होगा? लेकिन मौत तो मौत है सभी को आनी है और सिंधुताई सकपाल यह कहती हुई कि “मेरे बच्चों का ख़्याल रखना..” इस दुनिया को अलविदा कह गई। महाराष्ट्र सरकार ने सिंधुताई सकपाल (Sindhutai Sakpal) का अन्तिम संस्कार भी पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more Sindhutai Sakpal, mother of 1000 children is no more

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